गुरु उवाच
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स्वयं के प्रति प्रशंसात्मक वचनों को गुरुप्रशंसा (गुरु के प्रति) में लगा लेना ही अपने गुरु के प्रति समर्पण की अनूठी कला है।
The unique art of surrendering to one's Guru is to attach praiseworthy words towards oneself towards the Guru.
ॐ
साहित्य संग्रह
स्तोत्र एवं भजन
31:05
भक्तामर स्तोत्र
10:17
गणधर वलय स्तोत्र
6:55
वीतराग स्तोत्र
12:44
जीवन है पानी की बूँद
7:40
महावीराष्टक स्तोत्र
1:27








